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जो CM बनने से चूके

राजीव बोले- ‘बीरेंद्र सिंह, बहुमत मिला तो तुम मुख्यमंत्री’:रिजल्ट से 2 दिन पहले राजीव की हत्या, नरसिम्हा राव के करीबी भजनलाल CM बन गए

4 महीने पहले

14 मई 1991, रात करीब 1:30 बजे का वक्त। देश में लोकसभा चुनावों के साथ ही हरियाणा में विधानसभा चुनाव चल रहे थे। पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी फरीदाबाद में एक सभा के बाद दिल्ली के अपने आवास 10 जनपथ लौटे। उनके साथ हरियाणा के पूर्व CM चौधरी भजनलाल और हरियाणा कांग्रेस अध्यक्ष चौधरी बीरेंद्र सिंह भी थे। राजीव को उनके आवास छोड़ने के बाद दोनों लौटने लगे, तभी राजीव ने आवाज दी, ‘बीरेंद्र सुनो।’

चौधरी बीरेंद्र सिंह और भजनलाल पीछे मुड़े और वापस राजीव के पास आने लगे। राजीव ने कहा, ‘भजनलाल जी आप वहीं रुको।’ बीरेंद्र सिंह उनके पास पहुंचे तो राजीव ने पूछा, ‘मुझे ये बताइए, क्या हरियाणा में मेजॉरिटी आएगी?’ बीरेंद्र सिंह बोले, ‘सर पक्का…।’

राजीव ने कहा- ‘अगर मेजॉरिटी आएगी तो तुम चीफ मिनिस्टर…। नहीं आएगी तो ये आदमी अपना खेल फिर खेलेगा। उसमें फिर कुछ नहीं हो सकता।’

20 मई को हरियाणा में पोलिंग हुई और अगले ही दिन यानी 21 मई को तमिलनाडु के श्रीपेरंबुदुर में एक चुनावी सभा में राजीव गांधी की हत्या हो गई। दो दिन बाद यानी 23 मई को नतीजे आए। केंद्र में कांग्रेस की सरकार बनी और पीवी नरसिम्हाराव प्रधानमंत्री।

हरियाणा में वैसा ही हुआ जैसा बीरेंद्र सिंह ने राजीव गांधी से बताया था। कांग्रेस को 90 में से 51 सीटें मिलीं। अब बारी मुख्यमंत्री चुनने की थी। राजीव गांधी की हत्या के बाद बीरेंद्र सिंह का दिल्ली में कोई अपना नहीं था, जबकि भजनलाल नरसिम्हा राव के करीबी थे। 23 जून को भजनलाल की ताजपोशी कर दी गई। इस तरह बीरेंद्र सिंह CM बनने से चूक गए। …ये किस्सा चौधरी बीरेंद्र सिंह ने एक इंटरव्यू में बताया था।

दैनिक भास्कर की स्पेशल सीरीज ‘जो CM बनने से चूके’ में कहानी चौधरी बीरेंद्र सिंह की…

साल 1990-91, पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के साथ चौधरी बीरेंद्र सिंह।

25 मार्च, 1946 को रोहतक में जन्मे चौधरी बीरेंद्र सिंह के पिता चौधरी नेकीराम संयुक्त पंजाब और हरियाणा के बड़े नेता थे। उनके नाना सर छोटूराम दिग्गज किसान नेता थे। एक इंटरव्यू में बीरेंद्र सिंह बताते हैं कि उनके जन्म के पहले उनकी एक बहन और दो भाई की कम उम्र में ही मौत हो चुकी थी। गांव में हेल्थ फैसिलिटी नहीं थी, इसलिए जींद के डूमरखां गांव से उनकी मां नाना के यहां रोहतक रहने आ गईं और यहीं उनका जन्म हुआ।

जिस घर में चौधरी बीरेंद्र सिंह का जन्म हुआ, उसे ‘नीली कोठी’ के नाम से जाना जाता है। करीब Centred साल पुरानी कोठी को उनके नाना ने बनवाया था। बीरेंद्र सिंह ने 1967 में रोहतक गवर्नमेंट कॉलेज से ग्रेजुएशन किया। इसके बाद पंजाब यूनिवर्सिटी से लॉ की पढ़ाई पूरी की।

एक इंटरव्यू में बीरेंद्र सिंह बताते हैं- ‘आगे चलकर मुझे क्या करना है, इसका अंदाजा बचपन में ही हो गया था। गांव के लोग किसी काम से रोहतक आते थे, तो नीली कोठी जरूर आते थे। आराम करने, हुक्का पीने या चाय-पानी के लिए। उस समय जब वे छोटूराम जी के कामों का बखान करते थे तो मैं उनकी बातें सुना करता था। तभी से मेरी राजनीतिक समझ बनने लगी थी।

बीरेंद्र सिंह के पिता चौधरी नेकीराम।

कांग्रेस ने पिता नेकीराम की जगह चौधरी बीरेंद्र सिंह को टिकट दिया बीरेंद्र सिंह बताते हैं- ‘मेरे मामा चौधरी श्रीचंद्र हरियाणा विधानसभा के स्पीकर थे। उन्होंने मुझसे कहा था कि मेरे बाद तुम्हें राजनीति में आना है और रोहतक में राजनीति करनी है, लेकिन जब मैं लॉ फर्स्ट ईयर में था, तभी उनका निधन हो गया। मुझे अपना फैसला बदलना पड़ा और लॉ की पढ़ाई पूरी करने के बाद जींद में लॉ की प्रैक्टिस शुरू कर दी।

प्रैक्टिस करते हुए मुझे साल भर ही हुआ था। उस वक्त मेरे पिता बंसीलाल जी की कैबिनेट में रेवेन्यू मिनिस्टर थे। किसी कारण से कांग्रेस ने पिताजी को टिकट न देने का फैसला किया और कहा कि अगर आपका बेटा लड़ना चाहता है, तो लड़े। पिताजी ने एक सेकेंड सोचे बिना इस पर सहमति जताई। मैं पहली बार 1972 में नरवाना से चुनाव लड़ा, लेकिन हार गया।’

इमरजेंसी के बाद 1977 में फिर से विधानसभा चुनाव हुए। कांग्रेस का सूपड़ा साफ हो गया। उसे राज्यभर में महज तीन सीटें ही मिलीं। बीरेंद्र सिंह उन तीन लोगों में शामिल थे, जो जीते थे। उन्होंने उचाना कलां सीट से जीत हासिल की थी। इसके बाद 1982 में हुए विधानसभा चुनाव में भी उन्होंने दूसरी बार जीत हासिल की।

1984 में उन्होंने हिसार से लोकसभा चुनाव जीता। हालांकि, 1989 में जनता दल की लहर में वे चुनाव हार गए। इसके बाद 1991, 1996 और 2005 में उन्होंने विधानसभा चुनाव जीता।

साल 2014, तब ‌BJP के अध्यक्ष रहे अमित शाह के साथ चौधरी बीरेंद्र सिंह। इसी दिन उन्होंने BJP जॉइन की थी।

राजीव ने कहा- मैं अमेरिका से लौट के आऊं तो ये आदमी प्रदेश अध्यक्ष बन जाना चाहिए बीरेंद्र सिंह बताते हैं- '1985 की बात है। राजीव गांधी अमेरिका जाने वाले थे। उन्होंने रात दो बजे दो लाइन की एक चिट्ठी लिखी और माखन लाल फोतेदार को दे दी। उस पर लिखा था कि जब मैं अमेरिका से लौट के आऊं, तो चौधरी बीरेंद्र सिंह प्रदेश अध्यक्ष बन जाना चाहिए।

उस समय कई लोगों ने राह में रोड़े अटकाने की कोशिश की। कई लोग चाहते थे कि बीरेंद्र सिंह प्रदेश अध्यक्ष न बनें, लेकिन फोतेदार जी ने कहा कि मैं अपने साहब की बात नहीं टाल सकता। इस तरह मैं प्रदेश अध्यक्ष बन गया।'

2005 में भी CM की दौड़ में रहे, लेकिन हुड्डा ने बाजी मारी 2005 में जब हरियाणा विधानसभा चुनाव के नतीजे आए तो कांग्रेस को 67 सीटें मिलीं। चुनाव कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष भजनलाल के नेतृत्व में लड़ा गया था। ऐसे में मुख्यमंत्री पद के लिए उनका नाम सबसे आगे माना जा रहा था। हालांकि, उनके अलावा भूपेंद्र हुड्डा, चौधरी बीरेंद्र सिंह, कुमारी सैलजा, रणदीप सुरजेवाला, अजय सिंह यादव, ओपी जिंदल और राव इंद्रजीत सिंह भी CM पद की दावेदारी कर रहे थे।

भूपेंद्र हुड्डा, बीरेंद्र सिंह और रणदीप सुरजेवाला के पास भजनलाल के खिलाफ 'जाट कार्ड' था। रणदीप सुरजेवाला युवा थे। उन्होंने CM ओमप्रकाश चौटाला को नरवाना सीट से हराया था। वहीं, बीरेंद्र सिंह हरियाणा की राजनीति के पुराने और अनुभवी नेता होने के नाते रेस में बने हुए थे। CM फेस पर मुहर लगाने के लिए कांग्रेस ने तीन ऑब्जर्वर भेजे। तीनों ने विधायकों से वन टु वन बात करके अपनी रिपोर्ट 2 मार्च को सोनिया गांधी को सौंप दी।

उस पूरे दिन और अगले दिन यानी 3 मार्च को भी सोनिया गांधी और ऑब्जर्वरों के बीच बातचीत चलती रही। उस समय के केंद्रीय संसदीय कार्य मंत्री गुलाम नबी आजाद, सोनिया के राजनीतिक सलाहकार अहमद पटेल भी बातचीत में शामिल थे।

इस बीच सूचना आई कि भजनलाल ने 4 मार्च को 10 बजे अपने घर समर्थक विधायकों की बैठक बुलाई है। उनकी मंशा थी कि विधायकों की संख्या दिखाकर आलाकमान पर दबाव बनाया जा सके। उसी दिन दिल्ली में विधायक दल की बैठक बुलाई गई।

कलानौर की विधायक करतार देवी ने रोहतक से सांसद भूपेंद्र हुड्‌डा का नाम विधायक दल के नेता के लिए प्रस्तावित कर दिया। इसके बाद चौधरी बीरेंद्र सिंह, हुड्डा के नाम का अनुमोदन करते हैं। करीब 90 मिनट की बैठक के बाद जनार्दन द्विवेदी मीडिया को बताते हैं कि कल शाम यानी 5 मार्च को भूपेंद्र हुड्डा चंडीगढ़ में हरियाणा के मुख्यमंत्री की शपथ लेंगे।

साल 2017, हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र हुड्डा के साथ चौधरी बीरेंद्र सिंह।

शपथ से पहले मनमोहन बोले- चौधरी साहब, आपको फिर मौका देंगे साल 2013, मनमोहन सरकार के कैबिनेट का विस्तार होने वाला था। चौधरी बीरेंद्र सिंह का नाम भी मंत्रिमंडल में लगभग तय माना जा रहा था। उनका नाम राष्ट्रपति के पास भेजा जा चुका था। राष्ट्रपति भवन में एंट्री के लिए उन्हें 6 पास भी मिल चुके थे।

शपथ ग्रहण से एक दिन पहले रात करीब 11 बजे बीरेंद्र सिंह के फोन की घंटी बजी। फोन पर सोनिया गांधी के राजनीतिक सलाहकार अहमद पटेल थे। उन्होंने कहा- 'यार बीरेंद्र थोड़ी प्रॉब्लम आ गई है।' इसके ठीक आधे घंटे बाद मनमोहन सिंह ने उन्हें फोन किया। उन्होंने कहा- ‘चौधरी साहब, थोड़ी सी प्रॉब्लम है। हम आपको फिर मौका देंगे।’

बीरेंद्र सिंह बताते हैं- ‘उस रात मेरे घर पर चार-पांच हजार लोग आए थे। वे लोग खुश थे कि मैं मंत्री बनने वाला हूं। प्रधानमंत्री के फोन के बाद मुझे काफी तकलीफ हुई। मैंने सोनिया गांधी से मिलने का टाइम लिया। उनसे कहा कि इससे बुरा कुछ नहीं हो सकता। मैंने तभी पार्टी छोड़ने का विचार बना लिया था, लेकिन थोड़ा रुक गया। वरना लोग कहते कि पद के लिए पार्टी छोड़ दी। इस पूरे घटनाक्रम में भूपेंद्र हुड्डा का बड़ा हाथ था।’

9 नवंबर 2014, मोदी सरकार में केंद्रीय मंत्री पद की शपथ लेते हुए चौधरी बीरेंद्र सिंह।

2014 में 43 साल बाद कांग्रेस छोड़ी, 10 साल बाद फिर वापसी 16 अगस्त 2014, 43 साल कांग्रेस में रहने के बाद बीरेंद्र सिंह ने कांग्रेस छोड़कर BJP का दामन थाम लिया। जींद में अमित शाह की रैली के दौरान वे BJP में शामिल हो गए। प्रधानमंत्री मोदी ने उन्हें अपनी कैबिनेट में शामिल किया।

2016 में BJP ने बीरेंद्र सिंह को राज्यसभा भेजा। उनकी पत्नी प्रेमलता उचाना कलां सीट से दुष्यंत चौटाला को हराकर विधायक बनीं। हालांकि, 2019 लोकसभा चुनाव से पहले बीरेंद्र सिंह ने सक्रिय राजनीति से दूर होकर अपने IAS बेटे बृजेंद्र सिंह को हिसार सीट से चुनाव में उतारा। बृजेंद्र सिंह जीत गए, लेकिन उसी साल हुए विधानसभा चुनाव में दुष्यंत चौटाला ने उचाना सीट पर बीरेंद्र सिंह की पत्नी को हरा दिया।

BJP को पूर्ण बहुमत न मिलने से 10 सीट जीतने वाली JJP से गठबंधन करना पड़ा। यहीं से बीरेंद्र सिंह की BJP से खटपट शुरू हो गई। बीरेंद्र सिंह को अपनी मजबूत पकड़ वाले इलाके बांगर बेल्ट में JJP की सेंधमारी रास नहीं आ रही थी। इसके चलते वे JJP के खिलाफ खुलकर बयानबाजी करते रहे।

आखिरकार 2024 लोकसभा चुनाव से पहले मार्च में उनके बेटे बृजेंद्र सिंह ने BJP छोड़ कांग्रेस जॉइन कर ली। इसी के साथ बीरेंद्र सिंह के भी कांग्रेस में वापसी का रास्ता साफ हो गया। कुछ दिनों बाद बीरेंद्र भी कांग्रेस में शामिल हो गए।

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1.

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